17 अप्रैल, 2025 को रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग ने नई दिल्ली में एक दिवसीय “मंथन शिविर” का आयोजन किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, रसायन और उर्वरक मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने की। इस दौरान भारतीय रसायन और पेट्रोरसायन क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास पर चर्चा हुई।

सचिव (रसायन एवं पेट्रोरसायन) निवेदिता शुक्ला वर्मा ने अपने उद्घाटन भाषण में भारत के रसायन क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि यह उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.4% और विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन (GVA) का लगभग 9% योगदान देता है। उन्होंने कहा कि हालांकि बुनियादी ढांचे के विकास में प्रगति हुई है, लेकिन बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों और आत्मनिर्भर भारत के सरकारी विजन को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र के विकास के लिए और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
चर्चा के छह प्रमुख विषय थे:-
- बुनियादी ढांचे का विकास
- सस्टेनेबिलिटी, रीसाइक्लिंग और सर्कुलर इकोनॉमी
- व्यापार उपचारात्मक उपाय
- विकसित भारत की ओर विनिर्माण को बढ़ावा
- कुशल कार्यबल और प्रशिक्षण
- भविष्य के लिए तैयार प्लास्टिक उद्योग की रोडमैप
इन विषयों पर विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और संगठनों जैसे रेवेन्यू, उद्योग एवं आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन, फार्मास्यूटिकल्स, कौशल विकास एवं उद्यमिता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कपड़ा, MSME, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, NITI आयोग, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET) आदि के प्रतिनिधियों ने गहन विचार-विमर्श किया।

इन सभी विषयों पर हुई चर्चा के आधार पर सिफारिशें केंद्रीय मंत्री के समक्ष प्रस्तुत की गईं। उन्होंने “मंथन शिविर” को इस क्षेत्र के भविष्य पर विचार-विमर्श के लिए एक सार्थक मंच बताया और विभाग को इसके आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने अन्य मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधियों के सक्रिय योगदान की सराहना करते हुए कहा कि “समग्र और सम्पूर्ण सरकारी दृष्टिकोण” के तहत ऐसी चर्चाएँ नियमित रूप से होनी चाहिए, ताकि 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। उन्होंने मौजूदा चुनौतियों को स्वीकार करते हुए रसायन क्षेत्र में दीर्घकालिक और सतत विकास के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता पर जोर दिया और विश्वास जताया कि सही दृष्टिकोण से भारत एक लचीला और आत्मनिर्भर औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र बना सकता है।